Sunday 11 September 2016

पहचान



शिकारी आया था किनारे से होकर चुपचाप और पक्षी छुप गए थे  हर तरफ से ,न जाने कैसे पहचाने जाते है शिकारी उनको ना हाथ में तीर कमान थी न थी सर पर पत्तो वाली टोपी न ही रंग काला था ना ही मुस्कान डरावनी।
मासूम शिकारी था, लाचार सी हालत थी, चेहरे पर पड़ी झुर्रियां अपने बच्चों को न पाल पाना बता रही थी।
पंछी सारे छुप कर इंतज़ार कर रहे थे उसके बच्चों का आज भी भूका सो जाने का।
पर आज कैसे खाली हाथ लौट जाता?  आज तो मंझले बच्चे ने अपना पहला शब्द बोला था बीवी घर पर राह ताक रही थी आँखों मे उम्मीद लिए।
और और फिर एक पक्षी पकड़ा गया..........प्रकृति का नियम फिर सही हो चला फ़ूड चैन की खराबी ठीक हुई एक का दूसरे को खाना और उसका तीसरे को फिर चल पड़ा , चलो कोई नहीं वो ही सही उसे पता तो चला की शिकारी भूका है दो दिन से और सिर्फ सत्तू खाया था पिछली रात बचा हुआ कुछ।
और फिर अब राह ताक रहे है उस कबूतर के नन्हे बच्चे घोसले में उसके , जिसे वो शिकारी ले जा रहा है अपनी पीठ पर टांग कर चेहरे पर संतोष लिए...... ।

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