Saturday 24 October 2015

एक खत मेरे बाद मेरी बिटिया को

डरना मत तुम
रातो के जाले हटाना
कुछ शैतानी तारे नोचने को आएंगे
पर रौशनी की तपिश सफ़ेद ही देखना लाल नहीं
डरना मत तुम
चाँद तुम्हारा नहीं
ये रात तुम्हारी नहीं
घबराना मत तुम सुबह तुम्हारी होगी
तो क्या हुआ जो आ जाती है रात हर रोज़
इसी आसमान पर रात है इसी पर सवेरा
तीन पहर तक संभाल लेना अकेले
फिर उसके बाद कभी कभी मैंने चिड़ियों को चहचहाते सुना है
और धीरे धीरे सूरज की रौशनी डूबा देगी
आसमान को नारंगी रंग से
मेरी बहादुर बिटिया
डरना मत तुम। 

2 comments:

  1. वाह । बहुत सुन्दर चित्रण माँ की भावनाओं का वर्तमान परिपेक्ष्य में

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  2. धन्यवाद श्वेेता दी आभार

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