Thursday 15 October 2015

पुराना ज़माना

वो कहानी याद है तुम्हे ?
हाँ वही
वो तुमने पूरी नहीं सुनाई
ऐसा भी कोई ज़माना होगा जब
सब्जिया भी मिलावटी मिलेंगी?
पहले से ही कह देती हूँ ,
कोई चीज़ फ्री में मत देना किसी को
वरना लोग उसे बेज़्ज़ती समझेंगे उनकी।
और तुम लूट भी जाओगे तो शर्मिन्दिगी के साथ
समय तो आता रहेगा जाता रहेगा।
जमाना भी बदलेगा।
जो कमीज़ सी थी तुम्हारे लिए
तुम कह रहे थे वो तंग हो गयी है आज कल?
सही कहा जमाना जल्दी गुज़र रहा है।
गाँव में कच्ची सड़क के इस पार घर है,
और उस पार सबके खेत।
मिर्चियाँ और कोल्हा (कद्दू ) ही उगता आया है खेत में।
चाहे गाँव में ब्याह शादी हो, या मरन-करन कोल्हा ही बनता है।
बाकी दिन तो छाछ और मिर्च रोटी से निकल जाते है।
पर, याद रहे वहां ऐसा ना होगा।
अरे बाबा, सच मानो खाना खाने का तो समय ही नहीं होगा लोगो के पास
और भूक से मिट जाने वाली चीज़ो को लोग बिमारी समझ
साइकियाट्रिक के पास जाया करेंगे और लाखो उड़ाया करेंगे।
उन्हें नहीं पता होगा की हरी सब्जिया और फल, मंडी से ले आने पर ज्यादा असर होगा।
पर तुम बताना मत उन्हें ये बात, यकीन मानो नहीं मानेंगे वो।
और माँ तुम भी सुनो ,
जब खीर बनाओगी तो सर पर हाथ फिराते हुए ये मत कह देना
की खा लो ना तुम्हारे लिए पुरे दस बादाम डाले है उस वक़्त लोग तुम्हे चीप भी समझ सकते है
उन्हें नहीं पता होगा ये बादाम की गिनतियों वाला प्यार।
बताया था ना लूट भी जाओगे और वो भी शर्मिन्दिगी के साथ। 

6 comments:

  1. वाह - यथार्थ से रूबरू कराती प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  2. वाह - यथार्थ से रूबरू कराती प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  3. जीवन और समय के वास्तविक सच को उजागर करती बेहद उम्दा रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    सादर

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