Monday 28 September 2015

मेरी कलम

हाँ देखो ना मेरी कलम भी चलती है।
किसी को नहीं पता 
अरे  बाबा चलती है,
रूकती है,
मेरी सुनती है। 
कई बार रुक-रुक कर सोचती भी है। 
न जाने क्या काटा-पिटी करती है, फिर चलती है। 
बीच में कोई एरो बनाती है कुछ जोड़ देती है, 
फिर जब आखिरी लाइन आती है,
तो सोचती है ओह्फू ये क्या 
कुछ समझमे आने लगा था और कागज़ भर गया। 
ठीक तो निकालो अब नया। 
फिर चलती है, 
रूकती है,
सुनती है, सोचती है 
और फिर चलती है।
मेरी प्यारी कलम। 

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