कड कड करते पत्ते जब टूट कर
बिखर गये ज़मीन पर
तब आये उस सन्नाटे में एक आखिरी बचे
पत्ते ने कहा घीरे से
यारों तन्हाई नहीं सही जाती कुछ तो बोलों ।
बिखर गये ज़मीन पर
तब आये उस सन्नाटे में एक आखिरी बचे
पत्ते ने कहा घीरे से
यारों तन्हाई नहीं सही जाती कुछ तो बोलों ।
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