फर्क होता है लिखाई में
हर फूल मंदिर नहीं चढ़ता
कुछ टूट कर बिखरते है।
तो कुछ अपनों को दिए जाते है।
तो कुछ अपनों को दिए जाते है।
कुछ वीरो पर चढ़ जाते है,
तो कुछ सुन्दर सेज सजाते है।
तो कुछ सुन्दर सेज सजाते है।
तो कुछ माला में पिरोकर मंदिर चढ़ाये जाते है।
और हाँ कुछ मेरे जैसे भी होते है।
जो माला तक तो पोहच जाते है।
पर इंतज़ार करते है की कोई आये और ले जाये मंदिर तक
पर इंतज़ार करते है की कोई आये और ले जाये मंदिर तक
चढ़ाये गए तो सही नहीं तो वही पर मुरझाना पड़ता है।
फिर कोई स्कोप नहीं बचता वापस आने का
कह कर समझाना पड़ता है खुद को
किसी कोने में आखिरी खूशबू देती हुई मालाओ क साथ
आगे बढ़ो आगे बहुत फूल मालाएं है कतार में।
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