Monday 28 September 2015

कारवां

जब मेरी सारी मेहनत खो गयी थी कहीं
यकीन मानिये बहुत रोई थी यहीं
बार बार खाली बक्से को खोल कर देखा जाता था।
और आंसुओ की धारा बहा कर ये सोचा जाता था।
काश लापहरवाही ना की होती।
ये सुन्दर झोली खाली ना होती।
फिर सोचा की खाली झोली पर रोना तो कभी खत्म ना होगा
पर भरे पर मुस्कुराना जरूर होगा।
मैंने ही तो भरा था इसे तब
तो फिर आ सकता है ना नया अब
उठाये आंसुओ से मुस्कान
शुरू हुआ मेरा काम
पिछली बार की तो सब मिट गयी थी
आज बक्सा खोला तो पाया नयी कवितायेँ फिर भर गयी थी।

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