Monday, 28 September 2015

में

मेरी गोद में खेले धरती आकाश
सूरज से पल रही हूँ में
हूँ चंचल करती सननसनन
में उड़ चली संग ले ढेर पवन
में जब पिली चुनार ओढू तो दिन हो जाये
जब केश संवारु तो काली रात
में माथे पे चाँद लगाये
बालो में तारे सजाये
मुठ्ठी में भर लू जुगनू सारे
रात में छोड़ू गगन में तारे
प्रतिदिन नए रंग भर आऊ
में झरनो के संग झर्र जाऊ
में चिड़ियों के संग चेहकाऊँ
में
में प्रकृति हूँ। 

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