Friday 25 September 2015

तेज़ी से मिट रहा है सब कुछ


दिमाग बड़े कमाल का होता है
हम सोते है पर ये जागा होता है।

कभी हमे इशारो पे नचाता है
कभी सर्वश्रेष्ठ होने का घमंड दिखाता है।

कभी हृदय से लड़ पड़ता है
तो कभी जीत कर भी संतुष्टि नहीं।

पर मेरा कुछ अनोखा है
या मुझसे ये कुछ रूठा है।

लगे मुझे ऐसा की ये सजा दे रहा है
में रोज़ नयी कहानी लिखती जा रही हूँ
और ये तेज़ी से मिटाता जा रहा है।

अब मुझको तो डर लग रहा है
सब कुछ मिट जायेगा ऐसा जान पड़ रहा है।

सारी बातें, सारी यादें तूने ही सहेजी हैं
मिटाता जा मिटानी जो तुझे है।

पहचान ना मेरी मिटने पाये
वरना सर्वश्रेष्ठ तू नहीं दिल होगा।

जो सब कुछ जान कर भी
धड़कता ही रहेगा क्युंकि
शायद, अब वो तुझे पहचाने लगा है।

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