Monday 28 September 2015

वो बचपन की यादों का तहखाना

एक छोटा सा तहखाना लिए चलती हूँ में अपने अंदर
लिए समेटे सारी दुनिया,
सहेली मुनिया,
माँ की चूड़ियाँ,
वो बचपन की गुड़िया
पूरा बचपन याद है मुझको
थोड़ी धुल जमी है किनारो पर बस,
झाड़ धुल में पढ़ना चाहु
बहना चाहु उस बचपन में फिर से,
महंगे परफ्यूम नहीं वो पहली किताब की खूशबू,
बारिश में मेरी छोटी नईया,
बारिश क बाद वो मिटटी महकना,
उस मुनिया के गुड्डे से मेरी गुड़िया की शादी,
और चार दिन पहले से सारी उसकी तैय्यारी।
छोटे से लीलाट पे अपने माँ की बिंदिया को लगाना,
ऊँची एड़ी कर लम्बा हो जाना,
दुपट्टा डाल सर पे अपनी छोटी माँ बन जाना,
जब माँ पकडे मुझको चुपके से तो मेरा शर्माना।
हाँ वो बचपन की यादों का तहखाना
एक छोटा सा तहखाना लिए चलती हूँ में अपने अंदर। 

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