Monday 28 September 2015

मजदूर

रक़्स करती हुई जब बड़ी होती है सुराही 
तब जा कर हो पाती है कुम्हार की कमाई। 
लोहे को दे पाता है शकल जब लुहार 
तब जा कर सुनी जाती है उसकी मनुहार। 
खुद कट चमड़े को जब करनी पड़ती है पेरो की रखवाल 
तब जा कर अपने बच्चो को मोची पाता है पाल। 
घर घर संदेसा पहुँचा के जब पोस्टमेन घर आता है, 
तब जा के अपने घर का राशन भर पाता है। 
जब ५ पैसा एक लहंगे पर वो चमकता गोटा लग पड़ता है, 
तब जा के उसके घर का चूल्हा आग पकड़ता है। 
गर्म भट्टी में जल जब काम कर पाते है मजदूर, 
तब जा कर खुरदरे हाथो से अपना जहाँ बसा पाते है मजदूर। 

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